[Download] "Vedant Darshan Aur Moksh Chintan (वेदांत दर्शन और मोक्ष चिंतन)" by Dr. Ravindra Bohra * eBook PDF Kindle ePub Free
eBook details
- Title: Vedant Darshan Aur Moksh Chintan (वेदांत दर्शन और मोक्ष चिंतन)
- Author : Dr. Ravindra Bohra
- Release Date : January 01, 2021
- Genre: Religion & Spirituality,Books,
- Pages : * pages
- Size : 1205 KB
Description
सभ्यता व संस्कृति के ऊषा काल से ही मानवीय चिन्तन प्रक्रिया अबाध गति से चलायमान रही है तथा देश, काल व परिस्थिति में इसके अलग-अलग सोपान रहे हैं। भारतीय सन्दर्भ में यदि चिन्तन विधाओं पर एक विहंगम दृष्टिपात करें तो यह तथ्य ज्ञात होता है कि, दार्शनिक चिन्तन का प्रारम्भ यद्यपि दुःखों की जिज्ञासा से होता है तथापि इसका पर्यवसान समग्र जीवन के श्रेष्ठतम श्रेयस् लक्ष्य 'मोक्ष' की उपलब्धि में होता है। भारतीय दर्शन में आधिभौतिक, आध्यात्मिक तथा आदिदैविक इन त्रिविध दु:खों से आत्यन्तिक तथा एकान्तिक निवृत्ति को परम पुरुषार्थ की संज्ञा से सम्बोधित किया गया है। अर्थ, काम, धर्म तथा मोक्ष रूपी चार पुरुषार्थों में मोक्ष को परम पुरुषार्थ की संज्ञा प्रदान की गई है। इन पुरुषार्थ चतुष्टय में साधन-साध्य सम्बन्ध माना जाता है। अर्थ, काम तथा धर्म रुपी त्रिवर्ग को मोक्ष रुपी चतुवर्ग (साध्य) का साधन माना जाता है।
ज्ञातव्य है कि समग्र भारतीय चिन्तन विधा का चरमोत्कर्ष वेदान्त चिन्तन माना जाता हैं। 'वेद' शब्द 'विद्' धातु से व्युत्पन्न है जिसका आशय 'जानने' से अथवा 'ज्ञान प्राप्त करने' से है; अर्थात् जिसको जानने के पश्चात् अन्य किसी प्रकार के ज्ञान को जानने की आवश्यकता नहीं रहती वही वेद है। वेद ही ज्ञान के अक्षय व अक्षुण्ण भण्डार हैं। वैदिक साहित्य के अंतिम भाग को वेदान्त शब्द से निरूपित किया जाता है। संस्कृत में 'अन्त' शब्द के तीन अर्थ होते हैं – 'अन्तिम भाग', सिद्धान्त' और 'सार तत्त्व'। इस प्रकार वेदान्त का अर्थ वेदों के सार तत्त्वों से है। उपनिषदों में वेदान्त के उपर्युक्त तीनों अर्थों का समावेश हो जाता है इसलिए उपनिषदों के लिए वेदान्त शब्द व्यवहार किया जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक सभी भारतीय विचारों और दर्शनों के मोक्ष-चिन्तन या आत्म साक्षात्कार के स्वरूपों का निरूपण करते हुए प्रमुख वेदान्त सम्प्रदायों के अनुसार मोक्ष-चिन्तन की व्याख्या करती है। वेदान्त की सभी प्रमुख वैचारिक शाखाओं के गूढ तथ्यों का सरल एवं अनुपम वर्णन पुस्तक में उपलब्ध है। पुस्तक के अंत में सभी विचारकों के मध्य परस्पर अन्तरसंगतता को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए सभी के विचारों को चिंतन के विभिन्न स्तरों के रूप में स्थापित करते हुए एक मात्र पूर्ण सत्य – 'ब्रह्म सत्यं-जगत मिथ्या' के निरुपण करने का प्रयास किया है। साथ ही मोक्ष चिंतन की वर्तमान में व्यवहारिकता और महत्त्व, जीवन का उच्चतम लक्ष्य और नैतिकता के साथ समन्वय की विवेचना की गई है। पुस्तक की भाषा सरल और ग्राह्य है। पुस्तक लेखन की शैली दार्शनिक अभिव्यक्तियों को अधिक स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाती है।.
The human thought process has been running since the dawn of civilization and culture, at an uninterrupted pace and there are different steps in the country, time and situation. If one takes a bird’s eye view of thinking disciplines in the Indian context, the fact is that, although philosophical thinking begins with the curiosity of sorrows, it leads to the achievement of ‘Moksha’, the best credit goal of all life. In the Indian philosophy, physical, spiritual and secular retirement of these three sorrows has been referred to as the term of ultimate effort. Moksha has been given the name of ultimate effort in the four efforts of meaning, work, religion and salvation. In these Purushartha Chatushthya, there is considered a viable relationship. The Trivarga meaning Earth, Work and Religion is considered as salvation, the Chaturvarga (Sadhya). It is known that the climax of the entire Indian thinking mode is considered Vedanta thinking. The word ‘Veda’ is derived from Vid Dhatu which means ‘to know’ or ‘to gain knowledge’; that is one who does not need to know any other kind of knowledge after knowing it is the Vedas. The Vedas are the inexhaustible and intact storehouse of knowledge. The last part of Vedic literature is represented by the Vedanta. In Sanskrit, the word ‘Anta’ has three meanings-‘last part’, ‘Siddhanta’ and ‘essence element’. Thus Vedanta refers to the essence elements of the Vedas. The Upanishads merge the above three meanings of Vedanta, hence the term Vedanta is used for Upanishads. The book describes the salvation of all Indian ideas and philosophies according to the major Vedanta teachings, representing the forms of salvation of self-realization. A simple and unique description of the deep facts of all the major conceptual branches of Vedanta is available in the book. At the end of the book, while trying to clarify the relationship between all thinkers, everyone has tried to formulate the only absolute truth ‘Brahma Satyam-Jagat Mithya’, setting the views of all as different levels of thinking. At the same time salvation contemplation has been discussed in the present day practicality and importance, highest goal of life and coordination with mortality. The language of the book is easy to understand and lucid. The style of the book writing makes philosophical expressions more clear and effective.